अनपढ़ धनपति



एक अनपढ़ धनपति था और वह मुंबई में रहता था। एक दिन उसे अपने किसी

व्यावसायिक मीटिंग के लिए कलकत्ता जाना था। अत: उसने यात्रा की सारी तैयारियां एक

दिन पहले ही कर ली थी। लेकिन ऐसा हुआ कि यात्रा की पूर्वरात्रि को उनके पुराने व

वफादार वॉचमैन ने एक सपना देखा और सपना भी ऐसा कि सेठजी मुंबई से कलकत्ता

जिस जहाज से गए हैं, उसका ऐक्सीडेन्ट हो गया है। बस चिंतित वॉचमैन ने यह बात

अपनी मालकिन यानी सेठजी की पत्नी को बताई, और उनसे सेठजी की यात्रा निरस्त करने

का निवेदन किया। पत्नी तो इतना सुनते ही आशंकित और भयभीत हो गई। सो उसने

किसी तरह सेठजी से निवेदन कर उनकी यात्रा निरस्त करवा दी। हालांकि सेठजी इस बात

से बड़े नाराज थे, परंतु पत्नी के सामने उनकी चलनी क्या थी?


खैर! उधर वाकई उस हवाईजहाज का ऐक्सीडेन्ट हो गया और उसमें सवार सभी

यात्रियों की मौत हो गई। सेठजी की पत्नी ने ना सिर्फ शुक्र मनाया, बल्कि उस वॉचमैन को

काफी इनाम भी दिया। उसने काम ही ऐसा किया था। ...लेकिन उधर सबके आश्चर्य के बीच

सेठजी ने उसे नौकरी से ही निकाल दिया। कारण पूछे जाने पर उन्होंने अपनी पत्नी को

समझाते हुए कहा- उसका सपना देखना और घटना घटित होना तो एक संयोग की बात है,

परंतु मुख्य सवाल यह कि एक वॉचमैन होकर वह सो ही कैसे सकता है? कल उठके घर पे

डाका पड़ा और यह सोता ही रह गया तो...? सेठजी की बात वाकई तर्कसंगत थी, पत्नी

वॉचमैन के प्रति लाख सहानुभूति रखने के बाद भी कुछ नहीं कह पाई।


सार:- जीवन में कितनी ही बड़ी ऊंच-नीच हो जाए या कितनी ही बड़ी खुशखबरी

दस्तक दे, मनुष्य को उसमें खोकर अपना होश नहीं गंवा देना चाहिए। परिस्थिति चाहे कैसी

ही क्‍यों न हो, मनुष्य की निगाह कभी बेसिक से नहीं हटनी चाहिए। सेठजी इस कहानी में

मौत के मुंह में जाते-जाते बचे थे, इतने बड़े हादसे का शिकार होने से बचे थे; लेकिन फिर

भी उनका होश बरकरार था, वॉचमैन की स्वाभाविक ड्युटी से उनका ध्यान नहीं हटा था।

वरना सामान्य मनुष्य तो सफलता-असफलता या गम और खुशी के माहौल में इस कदर

खो जाता है कि बाकी सब जगह से उसकी निगाह हट जाती है। और यही वास्तव में मनुष्य

के बार-बार बड़ी मुसीबतों में फंसने का कारण है।

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