एक महान मां की कहानी



 आपने थॉमस एडीसन का नाम तो सुना ही होगा। वे कितने महान वैज्ञानिक थे, यह

बताने की किसी को आवश्यकता नहीं। लेकिन शायद आप यह न जानते हों कि उनके

महान बनने की ना सिर्फ नींव उनकी मां ने रखी थी, बल्कि महान बनने की इमारत भी

उनकी मां ने ही चुनी थी। आज मैं आप लोगों की मुलाकात एडीसन की ऐसी महान मां

“नैन्सी” से करवाता हूँ।


एडीसन, नैन्सी की सातवीं संतान थे। वे बचपन से ही बड़े जिज्ञासु थे। जब सात

वर्ष की उम्र में उन्हें स्कूल में भरती करवाया गया तो उनकी जिज्ञासा उनके आड़े आ गई। वे

बात-बात पर टीचरों से सवाल पूछा करते थे। इससे तंग आकर टीचरों ने एडीसन की मां

नैन्सी को बुलवाकर कहा कि आपका बच्चा काफी डल है और ऊपर से फिजूल के सवाल

भी बहुत पूछता है। मां नैन्सी को अपने बच्चे को डल कहा जाना बिल्कुल रास नहीं आया।

वे इतना नाराज हो गई कि उन्होंने एडीसन को उस स्कूल से ही उठवा लिया।


फिर अगले दो वर्षों में एडीसन को दो और स्कूलों में भरती करवाया गया। परंतु ना

तो एडीसन की सवाल पूछने की आदत ही बदली, और ना ही उनके प्रति टीचरों का रवैया

ही बदला। यानी इस दरम्यान ले-देकर सिर्फ स्कूलें बदलती रही। इससे एडीसन की मां

नैन्सी को बड़ा झटका लगा। वे अत्यंत दुखी हुई। कोई उनके बच्चे को डल समझे या उसका

अपमान करे, यह उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। ...आखिर उन्होंने एडीसन को स्कूल से

उठवाते हुए टीचरों से साफ कहा कि डल मेरा लड़का नहीं; कमजोर आपकी नजर है। जो

उसकी प्रतिभा आपको दिखाई नहीं दे रही।


अब नैन्सी स्वयं एक टीचर रह चुकी थीं। वे जानती थीं कि एकबार बच्चों का

आत्मविश्वास डगमगा जाए तो फिर उसके लिए सम्भलना मुश्किल हो जाता है। सो, उन्होंने

आगे से अपने बच्चे को किसी स्कूल में न भेजने का निर्णय लिया। यही नहीं, उन्होंने अपने

दुलारे को घर पर स्वयं ही पढ़ाना भी तय किया।


 


एडीसन अपनी मां के इस प्यार और विश्वास से इतना तो खुश हुए कि उन्होंने बड़े

होने के बाद उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए एकबार कहा भी कि मैं मां के स्कूल न भेजे

जाने के निर्णय से अत्यंत भावुक हो उठा था और मैंने उसी रोज तय कर लिया था कि चाहे

जो हो जाए, मैं मां के विश्वास को कभी नहीं टूटने दूंगा। टीचर ने मुझे डल-स्टूडन्ट कहा

और मां ने स्कूल से उठवा लिया; ऐसी ममतामयी और विदुषी मां से और क्या चाहिए मुझे?

खैर, घर पर नन्‍्हें एडीसन मां से सभी विषय दिल लगाकर पढ़ने लगे। विज्ञान व

उसके प्रयोगों में वे विशेष रुचि दिखाने लगे। उधर मां से भी उन्हें हर विषय बाबत आवश्यक

उत्साह मिलता ही रहा। और आखिर एक दिन मां की इस प्यार भरी पकड़ाई उंगली के

सहारे वे विश्व के सबसे ज्यादा, यानी 093 पेटेंट्स रजिस्टर करवानेवाले वैज्ञानिक बने।

इनमें उस बल्ब का आविष्कार भी शामिल है, जिसने जगत को रोशन कर रखा है।


सार:- बस हर मां को नैन्सी से सीखना है। बच्चे को दुनिया में लाती भी मां है और

बच्चा सबसे ज्यादा निकट भी सिर्फ मां के ही होता है। और बच्चा अपने बचपन में चाहता

भी मां का प्रेम और विश्वास ही है। परंतु आजकल की अधिकांश माताएं अपने बच्चों को

दो-तीन वर्ष का होते-होते ही नर्सरी में ऐसे डाल देती हैं मानो उससे जान छुड़ाना चाहती

हों। फिर वे एडीसन कैसे बनेंगे? क्योंकि बच्चे को महान बनने के लिए डिग्री नहीं, मां का

प्यार और विश्वास चाहिए होता है। ...एडीसन के पास कौन-सी डिग्री थी? सो, संसार की

सारी मांएं ध्यान रख लें कि मां के प्यार और विश्वास के सहारे ही एडीसन ने एक-से-एक

चमत्कार किए थे। ...और आपको भी ऐसी ही मां बनना है।

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