विन्सेंट नामक महान चित्रकार का नाम तो आपने सुना ही होगा। चित्रकारी उनका
पैशन था। वे बस चित्र बनाते रहते; उसे बेचना, या नाम व दाम कमाना उनका उद्देश्य कभी
नहीं रहा। उनके लिए तो चित्रकारी में मिलनेवाला आनंद ही उनके कार्यों का एकमात्र
इच्छित परिणाम था। अब ऐसे व्यक्ति की चित्रकारी का क्या कभी कोई जोड़ हो सकता है?
बस वे चित्र बनाते और रखे रहते। बहुत हुआ तो दोस्तों के घर जाकर अपनी पेंटिंग्स
टांग आते। दोस्त भी दोस्त थे। पेंटिंग्स की कोई पहचान तो थी नहीं उन्हें, विन्सेंट के जाते ही
अपनी दीवारों से उसे निकालकर यहां-वहां रख देते। व्यर्थ ड्राइंगरूम की शोभा क्यों
बिगाड़ना? उधर विन्सेंट का ध्यान इन बातों में कहां विभाजित होनेवाला था। वे तो बस
चित्रकारी के दीवाने थे। उनका पूरा ध्यान बस पेंटिंग्स बनाने में ही लगा रहता था। वे फिर
कोई पेंटिंग बनाते, और फिर किसी दोस्त को दे आते। उनका दोस्त फिर उसे दीवार पर टांग
देता, और जाते ही फिर उतार फैंकता। लेकिन विन्सेंट का ध्यान ही नहीं जाता था कि इसी
दीवार पर उनकी ही पेंटिंग कई बार लग चुकी है।
खैर, एक दिन वे यूं ही किसी पहाड़ी पर बैठे हुए थे। बैठे-बैठे संध्या हो गई और
सूर्यास्त होने लगा। उन ऊंची पहाड़ियों के मध्य डूबते सूर्य का दृश्य ऐसा तो उभरा कि उन्हें
बेहद भा गया। और भाया तो ऐसा भाया कि उन्होंने उसकी पेंटिंग बनाने की ठान ली। फिर
क्या था, महीनों उसी पहाड़ी पर डेरा डाले सूर्यास्त की पेंटिंग बनाते रहे। अब ऐसी दीवानगी
के परिणाम तो आने ही थे। बस उनकी वह पेंटिंग अमर हो गई। विन्सेंट रातोंरात
विश्वविख्यात चित्रकार हो गए। फिर तो उनकी नई चित्रकारियां छोड़ो, पुरानी की भी मांग
बाजार में निकल आई। ऊंचे-ऊंचे दामों पे वे भी बिकना शुरू हो गई। निश्चित ही इससे
विन्सेंट के साथ-साथ दोस्तों की भी उड़ के लग गई। विन्न्सेंट की जो पेंटिंग्स उन्होंने यहां-
वहां फेंकी थी, सब खोज-खोज के बेच डाली। उनके सारे दोस्त भी विन्सेंट के साथ रातोंरात
अमीर हो गए।
सार:- कुल-मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि सफलता कार्य करने से मिलती है,
और सफलता का अनुपात सीधा-सीधा कार्य की गुणवत्ता पर निर्भर होता है। तथा कार्य की
गुणवत्ता कार्य पर ध्यान देने से आती है। इसके अलावा सफलता का और कोई सार-सूत्र
नहीं। यदि ध्यान फल की जगह सिर्फ कर्म पर हो तो सफलता सिर्फ समय की बात रह
जाती है, उसे आज नहीं तो कल दस्तक देनी ही पड़ती है। इसलिए यह हमेशा ध्यान रख
लेना कि कृष्ण द्वारा भगवद्वीता में कहा गया यह सूत्र कि “कर्म करो पर फल की चिंता मत
करो”, सफलता का सबसे बड़ा सार सूत्र है।
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