नवरत्न ऐसे एकत्रित होते


एकबार राजदरबार ने अपने ही एक सिपाही को आधा सेर चूना खाने की सजा

सुनाई। निश्चित ही उसकी गुस्ताखी कुछ बड़ी रही होगी, क्योंकि आधा सेर चूना चाटने के

बाद किसी भी मनुष्य का जीवित रहना मुश्किल होता है। खैर, सजा सुना दी गई थी और

अगले रोज चूना खरीद के लाकर उसे भरे दरबार में चाटना था। हुक्म के अनुसार वह स्वयं

पान की दुकान पर आधा सेर चूना खरीदने पहुंचा। पर जैसे ही उसने इतना चूना मांगा कि

दुकानदार चमक गया। ...अब एक व्यक्ति और आधा सेर चूना! दुकानदार को कुछ शंका

हुई, सो उसने इतना चूना एकसाथ खरीदने का कारण जानना चाहा। उस व्यक्ति ने बड़ा

दुखी होते हुए कहा कि मुझे कल दरबार में आधा सेर चूना एकसाथ चाटना है, यही मेरी

सजा है।


दुकानदार ने कहा- कोई बात नहीं! एक काम कर, पहले आधा सेर घी लेकर मेरे

पास आ जा, शायद मैं उससे तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं।


उसे तो उम्मीद की एक किरण जागी थी, सो वह तो यूं गया व फटाफट आधा सेर घी

लेकर आ गया। दुकानदार ने उसे आधा सेर चूना देते हुए कहा कि कल तुम दरबार में जाने

से पूर्व यह आधा सेर घी अपने घर पर ही खा लेना, फिर सजानुसार वहां जाकर आधा सेर

चूना खा लेना और सजा निपटते ही बगैर देर किए घर लौट जाना। इससे शायद तुम बच

जाओगे। अब डूबते को तिनके का सहारा! वह तो बड़ी उम्मीद लिए घर गया, और दूसरे दिन

उसने ठीक वैसा ही किया जैसा दुकानदार ने समझाया था। वह घर से आधा सेर घी पीकर

ही निकला। उधर सजानुसार उसने भरे दरबार में आधा सेर चूना भी खा लिया। अब चूंकि

चूना खाते ही उसकी सजा पूरी हो गई थी, सो उसे वापस घर भेज दिया गया ताकि घरवालों

के साथ वह अपना अंतिम समय बिता सके। उधर घर पहुंचते ही उसने फट से सारा चूना

घी के साथ उल्टी कर दिया। तबीयत में कुछ नरमी तो आई परंतु सुबह तक सब ठीक हो

गया। जब ठीक हो गया तो वह समय से अपनी ड्युटी करने हेतु दरबार में भी पहुंच गया।

अब वहां तो सबको मालूम था कि कल इसे आधा सेर चूना खिलाया गया है, सो सब

आश्चर्यचकित थे कि यह व्यक्ति जीवित कैसे बच गया? देखते-ही-देखते बात पूरे राजमहल

में फैल गई। जल्द ही यह बात अकबर के कानों तक भी पहुंची। अकबर को भी आश्चर्य

हुआ, उसने ताबड़तोड़ सिपाही को दरबार में बुलवाया। उसके आते ही अकबर ने उसके

जीवित रहने का राज पूछा। उसने ईमानदारी से दुकानदार की घी चाटने तथा उसके पश्चात

उलटी करनेवाली बात बता दी। अकबर दुकानदार की बुद्धिमानी और दूरदृष्टि पर आफरीन


 

हो गया। उसने ना सिर्फ तत्काल दुकानदार को दरबार में बुलवाया बल्कि हाथोंहाथ उसे

वजीर-ए-आजम के पद पर राजसभा में नियुक्त भी कर दिया। उस दुकानदार का नाम

महेशदास था, परंतु अकबर ने उसका नाम बदलकर बीरबल अर्थात्‌ “बलवान मस्तिष्क

वाला व्यक्ति” रख दिया। इतना ही नहीं एक दिन राजा की उपाधि से उसे सम्मानित भी

किया गया।


सार:- अकबर का यही गुण हमारे लिए सीखने जैसा है। दोस्त, यार या परिवार

अपनी जगह है, परंतु प्रतिभा से कभी कोई पक्षपात या रिश्तेदारी नहीं होती। प्रतिभा का

बिना पक्षपात के सम्मान होना ही चाहिए। अकबर की तरह हर व्यक्ति अपनी दुनिया का

राजा होता ही है और जीवन में प्रगति करने हेतु यह उसी की जवाबदारी है कि वह अपने

चारों ओर बिना पक्षपात के प्रतिभावान लोगों का समूह बनाए। ध्यान रख लेना कि रिश्तेदार

व दोस्तों से तो सभी घिरे रहते हैं, परंतु जीवन में प्रगति वही कर पाता है जिसके आसपास

प्रतिभावानों का जमावड़ा होता है। जीवन का यह सत्य भी ध्यान रख लेना कि दुनिया में

कोई पूर्ण या परफेक्ट नहीं होता है, अत: प्रगति हेतु उसे हरहाल में अनेक क्षेत्रों के

प्रतिभावान लोगों की जरूरत पड़ती ही है। और प्रतिभावान लोग ना तो पेड़ पे उगते हैं और

ना ही वे पैसों से प्रभावित किए जा सकते हैं। यह तो मनुष्य की प्रतिभा पहचाननेवाली

आंख तथा प्रतिभा की इज्जत करनेवाला हृदय ही होता है जो प्रतिभावान लोगों को अपने

निकट खींच लाता है। अत: आपको भी अगर जीवन में प्रगति करनी हो तो ऐसी ही आंख व

ऐसा ही हृदय विकसित करना होगा।

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